Arastu scientist biography poster

अरस्तु

लिसिपोस द्वारा अरस्तू की ग्रीक कांस्य प्रतिमा की रोमन प्रति (संगमरमर में) (लगभग   ईसा पूर्व), आधुनिक अलबास्टर आच्छादन के साथ।

जन्म ईसा पूर्व
स्टैगिरा , चाल्कीडियन लीग
मृत्यु ईसा पूर्व (उम्र वर्ष)
चाल्सिस , यूबोइया , मैकेडोनियन साम्राज्य, यूनान
मुख्य कृतीयाँ
युगप्राचीन यूनानी दर्शन
क्षेत्रपाश्चात्य दर्शन
विचार सम्प्रदाय (स्कूल)
उल्लेखनीय छात्रसिकंदर महान , थियोफ्रेस्टस , अरिस्टोक्सेनस
राष्ट्रीयतायूनानी
मुख्य&#;विचार
प्रमुख&#;विचारअरस्तुवाद
शिक्षाप्लैटोनीय अकादमी

प्रभावित

इब्न-रश्दवाद, इब्न्-सिनावाद, साहित्यिक नव-अरस्तुवाद , मैमोनिदीज़वाद, वस्तुवाद, परिव्राजक-संप्रदाय, पांडित्यवाद(ल्लुल्लवाद, नव, स्कॉटवाद, द्वितीय, थॉमसवाद, इत्यादि), साथ में माध्यमिक प्लेटोवादऔर नवप्लेटोवाद। देखे:अरस्तू से प्रभावित लेखकों की सूची, अरस्तू पर विभाष्य,छद्म-अरस्तू

अरस्तु (यूूनानी: Ἀριστοτέλης, अरीस्तोतेलीस्, ईपू – ईपू) प्राचीन यूनानी दार्शनिक और बहुश्रुत थे। उनका जन्म स्टेगेरिया नामक नगर में हुआ था और वे प्लेटो के शिष्य और सिकंदर के गुरु थे। उनके लेखन में प्राकृतिक विज्ञान, दर्शन, भाषाविज्ञान, अर्थशास्त्र, राजनीति, मनोविज्ञान, सौंदर्यशास्त्र और कला जैसे विषयों का एक विस्तृत परिक्षेत्र शामिल है । एथेंस के लाइसियम में दर्शनशास्त्र के परिव्राजक-संप्रदाय के संस्थापक के रूप में उन्होंने एक व्यापक अरस्तुवादी परंपरा की शुरुआत की, जिसने आधुनिक विज्ञान के विकास के लिए आधार तैयार किया ।

अरस्तू के जीवन के बारे में बहुत कम जानकारी है।&#;उनका जन्म श्रेण्य काल&#;के दौरान&#;उत्तरी ग्रीस&#;के&#;स्टैगिरा&#;नगर में हुआ था&#;।&#;जब अरस्तू बच्चे थे, तब&#;उनके पिता&#;निकोमेकस की मृत्यु हो गई और उसका पालन-पोषण एक अभिभावक द्वारा किया गया।&#;सत्रह या अठारह साल की उम्र में वह एथेंस में प्लेटो की&#;अकादमी&#;में शामिल हो गए&#;और सैंतीस साल की उम्र (&#;लगभग&#;  ईसा पूर्व&#;) तक वहीं रहे।&#;प्लेटो की मृत्यु के कुछ ही समय बाद, अरस्तू ने एथेंस छोड़ दिया और, मैकेदोन के फिलिप द्वितीय&#;के अनुरोध पर ईसा पूर्व में उनके बेटे&#;सिकंदर महान&#;को पढ़ाया।&#;उन्होंने लाइसियम में एक पुस्तकालय की स्थापना की जिससे उन्हें पेपाइरसपत्रावलीयों पर अपनी सैकड़ों पुस्तकों का उत्पादन करने में मदद मिली।

हालाँकि अरस्तू ने प्रकाशन के लिए कई महान ग्रंथ और संवाद लिखे, लेकिन उनके मूल निष्पाद का&#;केवल एक तिहाई ही बचा है, जिसमें से कोई भी प्रकाशन के लिए नहीं था।&#;अरस्तू ने अपने से पहले मौजूद विभिन्न दर्शनों का एक जटिल संश्लेषण प्रदान किया।&#;सबसे बढ़कर, यह उनकी शिक्षाओं से ही था कि&#;पश्चिम को&#;अपनी बौद्धिक&#;शब्दावली (कोश), साथ ही समस्याएं और अन्वीक्षण की विधियाँ विरासत में मिल सकी।&#;परिणामस्वरूप, उनके दर्शन ने पश्चिम में ज्ञान के लगभग हर रूप पर अद्वितीय प्रभाव डाला है और यह समकालीन दार्शनिक चर्चा का विषय बना हुआ है।

अरस्तू के विचारों ने&#;मध्ययुगीन विद्वता को&#;गहराई से आकार दिया। इनके&#;भौतिक विज्ञान&#;के प्रभाव ने&#;प्राचीन काल के अंत&#;और प्रारंभिक मध्य युग&#;से लेकर पुनर्जागरण तक विस्तार किया, और इसे तब तक व्यवस्थित रूप से प्रतिस्थापित नहीं किया गया जब तक कि&#;ज्ञानोदय और&#;चीरसम्मत यांत्रिकी&#;जैसे सिद्धांत विकसित नहीं हो गए। अंतिम रूप से न्यूटन के भौतिकवाद ने इसकी जगह ले लिया। अरस्तू के जीव विज्ञान&#;में पाए गए कुछ प्राणीशास्त्रीय अवलोकन, जैसे कि ऑक्टोपस की निषेचनांग (प्रजनन) भुजा&#;पर 19वीं शताब्दी तक अविश्वास किया गया था।[1] उन्होंने&#;मध्य युग के दौरान&#;यहूदी-इस्लामी दर्शन के साथ ईसाई धर्ममीमांसा को भी प्रभावित किया, विशेष रूप से&#;प्रारंभिक चर्च&#;के&#;नवप्लेटोवाद और&#;कैथोलिक चर्च की&#;पांडित्यवाद&#;परंपरा को&#;मध्ययुगीन मुस्लिम विद्वानों के बीच अरस्तू को "प्रथम शिक्षक" के रूप में और&#;थॉमस एक्विनास&#;जैसे मध्ययुगीन ईसाइयों के बीच उन्हें "दार्शनिक (द फिलॉस्फर)" के रूप में सम्मानित किया गया था, जबकि कवि&#;दांते ने&#;उन्हें "उन लोगों का गुरु कहा था जो जानते हैं"।&#;उनके कार्यों में तर्क का सबसे पहला ज्ञात औपचारिक अध्ययन शामिल है, और इसका अध्ययन पीटर एबेलार्ड और जॉन बुरिडन&#;जैसे मध्ययुगीन विद्वानों द्वारा किया गया।&#;तर्कशास्त्र पर अरस्तू का प्रभाव 19वीं शताब्दी तक जारी रहा और ये आज भी प्रासांगिक हैं।&#;इसके अलावा, उनका नीतिशास्त्र जो हमेशा से प्रभावशाली रहा, लेकिन सद्गुण नैतिकता&#;के आधुनिक आगमन के साथ हालांकि इसमें नए सिरे से रूचि पैदा हुई&#;है। अरस्तु का राजनीतिक दर्शन पर प्रसिद्ध ग्रंथ पोलिटिक्स व काव्यशास्त्र पर पोएटिक्स् नामक ग्रंथ है जो सौंदर्यशास्त्र की एक महत्त्वपूर्ण रचना है।[2] अरस्तु ने जन्तु इतिहास नामक पुस्तक लिखी। इस पुस्तक में लगभग प्रकार के विविध जन्तुओं की रचना, स्वभाव, वर्गीकरण, जनन आदि का व्यापक वर्णन किया गया।[उद्धरण चाहिए]

जन्म

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अरस्तु का जन्म ई.

पू. में हुआ था और वह ६२ वर्ष तक जीवित रहे। उनका जन्म स्थान स्तागिरा (स्तागिरस) नामक नगर था। उनके पिता मकदूनिया के राजा के दरबार में शाही वैद्य थे। इस प्रकार अरस्तु के जीवन पर मकदूनिया के दरबार का काफी गहरा प्रभाव पड़ा था। उनके पिता की मौत उनके बचपन में ही हो गई थी।

शिक्षा

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पिता की मौत के बाद 18 वर्षीय अरस्तु को उनके अभिभावक ने शिक्षा पूरी करने के लिए बौद्धिक शिक्षा केंद्र एथेंस भेज दिया। वह वहां पर बीस वर्षो तक प्लेटो से शिक्षा पाते रहे। पढ़ाई के अंतिम वर्षो में वो स्वयं अकादमी में पढ़ाने लगे। उनके द्वारा द लायिसियम नामक संस्था भी खोली गई |अरस्तु को उस समय का सबसे बुद्धिमान व्यक्ति माना जाता था जिसके प्रशंसा स्वयं उनके गुरु भी करते थे।

अरस्तु की गिनती उन महान दार्शनिकों में होती है जो पहले इस तरह के व्यक्ति थे और परम्पराओं पर भरोसा न कर किसी भी घटना की जाँच के बाद ही किसी नतीजे पर पहुंचते थे।

प्लेटो के निधन के बाद

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ईस्वी पूर्व में प्लेटो के निधन के बाद अरस्तु ही अकादमी के नेतृत्व के अधिकारी थे किन्तु प्लेटो की शिक्षाओं से अलग होने के कारण उन्हें यह अवसर नहीं दिया गया। एत्रानियस के मित्र शासक ह्र्मियाज के निमंत्रण पर अरस्तु उनके दरबार में चले गये। वो वहाँ पर तीन वर्ष रहे और इस दौरान उन्होंने राजा की भतीजी ह्र्पिलिस नामक महिला से विवाह कर लिया। अरस्तु की ये दुसरी पत्नी थी उससे पहले उन्होंने पिथियस नामक महिला से विवाह किया था जिसके मौत के बाद उन्होंने दूसरा विवाह किया था। इसके बाद उनके यहाँ नेकोमैक्स नामक पुत्र का जन्म हुआ। सबसे ताज्जुब की बात ये है कि अरस्तु के पिता और पुत्र का नाम एक ही था। शायद अरस्तु अपने पिता को बहुत प्रेम करते थे इसी वजह से उनकी याद में उन्होंने अपने पुत्र का नाम भी वही रखा था।

सिकंदर की शिक्षा

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मकदूनिया के राजा फिलिप के निमन्त्रण पर वो उनके तेरह वर्षीय पुत्र को पढ़ाने लगे। पिता-पुत्र दोनों ही अरस्तु को बड़ा सम्मान देते थे। लोग यहाँ तक कहते थे कि अरस्तु को शाही दरबार से काफी धन मिलता है और हजारों गुलाम उनकी सेवा में रहते है हालांकि ये सब बातें निराधार थीं। एलेक्जैंडर के राजा बनने के बाद अरस्तु का काम खत्म हो गया और वो वापस एथेंस आ गये। अरस्तु ने प्लेटोनिक स्कूल और प्लेटोवाद की स्थापना की। अरस्तु अक्सर प्रवचन देते समय टहलते रहते थे इसलिए कुछ समय बाद उनके अनुयायी पेरीपेटेटिक्स कहलाने लगे।

अरस्तु और दर्शन

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अरस्तु को खोज करना बड़ा अच्छा लगता था खासकर ऐसे विषयों पर जो मानव स्वभाव से जुड़े हों जैसे कि "आदमी को जब भी समस्या आती है वो किस तरह से इनका सामना करता है?” और "आदमी का दिमाग किस तरह से काम करता है?" समाज को लोगों से जोड़े रखने के लिए काम करने वाले प्रशासन में क्या ऐसा होना चाहिए जो सर्वदा उचित तरीके से काम करें। ऐसे प्रश्नों के उत्तर पाने के लिए अरस्तु अपने आस पास के माहौल पर प्रायोगिक रुख रखते हुए बड़े इत्मिनान के साथ काम करते रहते थे। वो अपने शिष्यों को सुबह सुबह विस्तृत रूप से और शाम को आम लोगों को साधारण भाषा में प्रवचन देते थे।

एलेक्सेंडर की अचानक मृत्यु पर मकदूनिया के विरोध के स्वर उठ खड़े हुए। उन पर नास्तिकता का भी आरोप लगाया गया। वो दंड से बचने के लिये चल्सिस चले गये और वहीं पर एलेक्सेंडर की मौत के एक साल बाद 62 वर्ष की उम्र में उनकी मृत्यु हो गयी। इस तरह अरस्तु महान दार्शनिक प्लेटो के शिष्य और सिकन्दर के गुरु बनकर इतिहास के पन्नो में महान दार्शनिक के रूप में अमर हो गये।

कृतियां

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अरस्तु ने कई ग्रथों की रचना की थी, लेकिन इनमें से कुछ ही अब तक सुरक्षित रह पाये हैं। सुरक्षित लेखों की सूची इस प्रकार है:[उद्धरण चाहिए]

इन्हें भी देखें

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सन्दर्भ

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बाहरी&#;कड़ियाँ

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